आज हम आपको एक महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं की दो ग्रहों की शीतकालीन सक्रांति क्या है तथा कब और क्यों मनाई गई है और इसका क्या महत्व है. दो गोलार्द्ध की शीतकालीन संक्रांति, तब होती है जब पृथ्वी का कोई भी ध्रुव सूर्य से दूर जाकर अपने अधिकतम झुकाव तक पहुंच जाता है जिसकी वजह से इस दिन वर्ष का सबसे छोटा दिन तथा साल का सबसे बड़ी रात होती है.
दो ग्रहों की शीतकालीन सक्रांति जो 21 दिसंबर 2020 में हुई थी तथा हर साल नियमित रूप से उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) पर होने वाले शीतकालीन सक्रांति में अंतर यह है कि इस दिन शनि और बृहस्पति ग्रह जो हर बीस साल में आपस में सबसे नजदीक आते हैं, वो इस शीतकालीन सक्रांति के दिन अपनी न्यूनतम दूरी के पास आए थे तथा इस तरह की घटनाएं कई सौ सालों में एक बार होती है. तो आइए इस बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते हैं.
{tocify} $title={Table of Contents}शीतकालीन संक्रांति क्या है.
जब भी पृथ्वी ग्रह का कोई ध्रुव सूरज से दूर जाकर अपने अधिकतम झुकाव तक पहुंचता है तो इसे शीतकालीन संक्रांति कहते हैं. इसे आप दो धुर्वो की शीतकालीन संक्रांति भी कह सकते हैं क्योंकि यह उतरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध दोनो में होती है लेकिन समय अलग अलग होता है. 21 दिसम्बर को उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकालीन संक्रांति होती हैं तथा 21 जून को दक्षिणी गोलार्द्ध में शीतकालीन संक्रांति होती हैं. वहीं 21 दिसंबर को दक्षिणी गोलार्द्ध पर "ग्रीष्मकालीन सक्रांति" या "दिसंबर सक्रांति (December Solstice)" होती है. शीतकालीन संक्रांति (Winter Solstice) को "मिडविंटर" तथा "हीमल संक्रांति" (Hiemal Solstice) या "हाइबरनल संक्रांति (Hibernal Solstice)" भी कहा जाता है. इस दिन सूर्य अपनी रोजाना की अधिकतम ऊंचाई की तुलना में सबसे कम ऊंचाई पर होता है जिस कारण इस दिन साल का सबसे छोटा दिन तथा वर्ष का सबसे बड़ी रात होती है.
शीतकालीन संक्रांति कब होती हैं.
शीतकालीन सक्रांति पृथ्वी ग्रह के उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध पर अलग-अलग समय में आती है. उत्तरी गोलार्द्ध में जहां यह सामान्यत 21 या 22 दिसंबर को होती है वही दक्षिणी गोलार्द्ध में आमतौर पर 20 या 21 जून को शीतकालीन संक्रांति आती है. इस तरह शीतकालीन सक्रांति वर्ष में दो बार होती है जो जून में दक्षिणी गोलार्द्ध में और दिसंबर में उत्तरी गोलार्ध में और इस दिन उस गोलार्द्ध पर उस साल का सबसे छोटी अवधि का दिन तथा सबसे बड़ी अवधि की रात होती है.
शीतकालीन संक्रांति क्यों होती है.
21 दिसंबर को पृथ्वी का 23½° अक्ष पर झुकाव होने के कारण सूर्य की लम्बवत किरणें मकर रेखा पर पड़ती है होती है जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में शीतकालीन सक्रांति होती है तथा दक्षिण गोलार्द्ध में ग्रीष्मकालीन सक्रांति जिसकी वजह से इस दिन साल का सबसे छोटी अवधि का दिन तथा सबसे बड़ी अवधि की रात होती है. ठीक इसकी विपरीत स्थिति 21 जून को दक्षिणी गोलार्द्ध में होती है. सूर्य की औसतन रोजाना की अधिकतम ऊंचाई इस दिन न्यूनतम होती है.
दो ग्रहों की शीतकालीन सक्रांति 21 दिसंबर 2020
बृहस्पति और शनि दो ग्रहों की शीतकालीन सक्रांति 21 दिसंबर 2020 को हुई थी जिसके बारे में काफी चर्चा हुई थी तथा गूगल पर इस बारे में डूडल भी बना था. तो यह क्यों और कैसे होता है इस बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. हम सब जानते हैं कि सौरमंडल में सभी ग्रह सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाते हैं लेकिन इनकी गति तथा सूर्य से दूरी अलग-अलग होने के कारण यह ग्रह अलग-अलग समय में नियमित रूप से एक दूसरे के सबसे नजदीक तथा सबसे दूर होते रहते हैं.
इसी कड़ी में "बृहस्पति और शनि" हर 20 साल में एक बार आपस में अपनी सबसे नजदीकी दूरी पर होते हैं. लेकिन 21 दिसंबर 2020 का दिन इसलिए ऐतिहासिक रहा की इस दिन बृहस्पति और शनि के न्यूनतम दूरी पर होने के साथ ही उतरी गोलार्द्ध में शीतकालीन संक्रांति भी थी. इस तरह की खगोलीय घटनाएं कई शताब्दियों में एक बार होती है. शनि और बृहस्पति के मिलन के रूप में दो ग्रहों की शीतकालीन संक्रांति की यह घटना 1623 ई. के बाद 2020 में ही हुई थी यानी 397 वर्ष बाद ऐसी खगोलीय घटना हुई.
जब 1623 में यह घटना हुई तब तो बड़े स्तर पर इस त्यौहार को मनाया गया और इसे महान संयोजन (The great conjuntion) नाम दिया गया तथा टेलिस्कोप का आविष्कार करने वाले गैलीलियो गैलीली भी इस घटना के साक्षी बने थे.
21 दिसंबर 2020 को भी दो ग्रहों की शीतकालीन सक्रांति की इस अद्भुतपूर्व घटना को कई देशों के लोगो ने देखा तथा इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी बने.
गूगल ने भी इस खास दिन पर एक खास डूडल बनाया था. इस डूडल को गूगल ने अंतरिक्ष एजेंसी नासा के सहयोग से बनाया था तथा इसमें शनि और बृहस्पति को एक दूसरे की तरफ हाथ हिलाते हुए दिखाया गया था जैसे की यह एनीमेटिड डूडल भी इस ऐतिहासिक शीतकालीन संक्रांति का जश्न मना रहे हो.
शीतकालीन सक्रांति का महत्व और जश्न
दुनिया के कई सामाजिक व्यवस्थाओं तथा संस्कृतियों में शीतकालीन संक्रांति का महत्वपूर्ण स्थान है तथा इसे साल का एक महत्वपूर्ण समय माना जाता है. कुछ देशों में इसे सर्दियों का मध्य समय माना जाता है यानी मिडविंटर माना जाता है तथा कुछ देशों में इस दिन से सर्दियों की शुरुआत मानी जाती है. दुनिया के कई देशों में इस दिन को त्यौहार के रूप अनुष्ठानों द्वारा धूमधाम से मनाया जाता है. स्काॅटलैंड जैसे देशों में इस दिन से चक्रीय कैलेंडर की शुरूआत होती थी. इस तरह शीतकालीन संक्रांति को दुनिया के कई जगहों पर धार्मिक रूप से तथा धूम-धड़ाके और गाजो-बाजो के साथ मनाया जाता है.
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इस तरह से आपने आज शीतकालीन सक्रांति कब क्यों और कैसे मनाई जाती है तथा इसका सांस्कृतिक सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व क्या है इस बारे में जानकारी प्राप्त कि है. साथ ही आपने हर साल मनाए जाने वाले शीतकालीन सक्रांति तथा 21 दिसंबर 2020 को मनाई गई दो ग्रहों की शीतकालीन सक्रांति के बारे में विस्तार से जाना तथा अपनी सामान्य जानकारी में इजाफा किया.